Sunday, 30 September 2012

पहचान लिया है नारी ने
पितृसत्ता के उन अस्त्रों को
जिन्होंने सदियों उसे
...
पराधीन रखा
...
वह सहती रही
प्रतिकार भी करती रही
पर कोमल भावनाओं के वशीभूत
तज नहीं पाई
उस दोगली व्यवस्था को
पर अब उसने चुन लिया है
अपने हिस्से का आकाश
अपने हिस्से की आधी जमीन
और खुशी...........

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