पहचान लिया है नारी ने
पितृसत्ता के उन अस्त्रों को
जिन्होंने सदियों उसे
...
पराधीन रखा
...
वह सहती रही
प्रतिकार भी करती रही
पर कोमल भावनाओं के वशीभूत
तज नहीं पाई
उस दोगली व्यवस्था को
पर अब उसने चुन लिया है
अपने हिस्से का आकाश
अपने हिस्से की आधी जमीन
और खुशी...........
...
वह सहती रही
प्रतिकार भी करती रही
पर कोमल भावनाओं के वशीभूत
तज नहीं पाई
उस दोगली व्यवस्था को
पर अब उसने चुन लिया है
अपने हिस्से का आकाश
अपने हिस्से की आधी जमीन
और खुशी...........
No comments:
Post a Comment