Friday 18 May 2012

ब्रिटिश कुमाऊँ.(गढ़वाल)-

ब्रिटिश कुमाऊँ.(गढ़वाल)-  उत्तर में तिब्बत से लेकर दक्षिण में रुहेलखण्ड तक तथा पश्चिम में टिहरी राज्य से पूर्व में नेपाल तक विस्तृत लगभग 9600 वर्ग किमी.(6000 वर्ग मील) का भू.भाग इसके अन्तर्गत था। इस क्षेत्र पर औपनिवेशिक शासन के तेरह दशकों (1815.1947) में से जाॅर्ज विलियम ट्रेल(1815.35),  जे.एच. बैटन(1848.1856), तथा हेनरी रैमजे(1856.1884) का युग व्यापक निर्माण एवं परिवर्तनों का युग रहा। इस अवधि में विभिन्न बन्दोबस्तों के माध्यम से कुमाऊँ की प्रशासनिक इकाइयों और उनकी सीमाओं के पुनर्गठन के साथ.साथ भू.व्यवस्था को भी एक नया स्वरूप प्रदान किया गया। अगले छः दशकों में 17 कमिश्नर और हुए।
       1815 में एडवर्ड गार्डनर को कुमाऊँ का प्रथम कमिश्नर नियुक्त किया गया,किन्तु छः माह बाद ही ट्रेल को कमिश्नर बनाया गया। ब्रिटिश कुमाऊँ के प्रशासनिक पदानुक्रम में कमिश्नर सर्वोच्च पदाधिकारी था। इसके बाद जिले के अधिकारी डि0कमिश्नर या कलेक्टर, परगने या सब.डिवीजन में डि0कलेक्टर , तहसील में क्रमशः तहसीलदार, नायब तहसीलदार ( या पेशकार. कुमाऊँ में),कानूनगो या सुुपरिंटेंडेंट का स्थान था। इनके नीचे पट्टी के पटवारी थे। थोकदार एवं पधान ग्राम शासन में पटवारी के सहायक थे।  
      1839 में कुमाऊँ कमिश्नरी को दो जिलों- कुमाऊँँ तथा गढ़वाल में विभाजित किया गया। 1858 के भारत सरकार  अधिनियम द्वारा  भारतीय प्रशासन का नियंत्रण ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश क्र्राउन को सौंपे जाने के बाद प्रशासनिक दृष्टि से पहला परिवर्तन 1862 में तराई जिले के गठन के रूप में हुआ।1871 में देहरादून को सहारनपुर जिले से अलग करके एक स्वतंत्र जिला घोषित किया गया। 1891 में कुमाऊँ के छः तथा तराई के सात परगनों को मिलाकर नैनीताल जिले का और कुमाऊँ जिले के शेष भाग से अल्मोड़ा जिले का गठन किया गया। 
       जिले से छोटी इकाई तहसील थी। 1815 में प्रथम कमिश्नर एडवर्ड गार्डनर के समय यहाँ नौ तहसीलें -अल्मोड़ा, काली कुमाऊँ, पाली पछाऊँ, कोटा , सोर, फलदाकोट,रामगढ़, श्रीनगर और चाँदपुर थीं।1816 में द्वितीय कमिश्नर ट्रेल ने इन तहसीलों को अल्मोड़ा में मिलाकर इस नयी तहसील को हजूर तहसील नाम दिया। 1821 में सोर तहसील को समाप्त करके गंगोली को हजूर तहसील(अल्मोड़़ा) में तथा सोर,सीरा और अस्कोट परगनों को काली कुमाऊँ से संयुक्त किया गया। 1823 ई. में साल अस्सी(संवत 1880) के बन्दोबस्त के माध्यम से ट्रेल ने प्रशासनिक व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन किए। इस समय तक तहसीलों की संख्या घटकर चार(हजूर, काली कुमाऊँ, श्रीनगर और चाँदपुर) रह गई। 1834 में ट्रेल ने  श्रीनगर और चाँदपुर को एक तहसील में संयुक्त करके कैन्यूर को नई तहसील का मुख्यालय बनाया। 1839 में पृथक जिला बनने के बाद गढ़वाल में एक ही तहसील थी,जिसका मुख्यालय पौड़ी में था।1840 के बाद कुमाऊँ जिले में एक तीसरी तहसील भाबर का गठन हुआ,जो संभवतः 19वीं शताब्दी के पाँचवें दशक तक बनी रही। कुछ समय के लिए इस तहसील को विघटित कर दिया गया और 1860 के बाद किसी वर्ष में पुनः भाबर तहसील का गठन करके हल्द्वानी में इसका मुख्यालय बनाया गया। 1891 में नैनीताल तहसील बनी। 1891 में तराई क्षेत्र में भी तीन तहसीलें -काशीपुर,रुद्रपुर तथा किलपुरी थीं।
  तहसील से छोटी इकाई परगना थी। प्रारंभ में  ब्रिटिश कुमाऊँ के पूर्वी क्षेत्र(कुमाऊँ) में कुल चैदह तथा पश्चिमी क्षेत्र(गढ़वाल)में कुल सत्रह परगने थे। 1821 में इनकी संख्या बढ़ाकर उन्नीस कर दी गई। गढ़वाल में कुछ परगनों को विघटित करके अन्य परगनों में सम्मिलित किया गया और सत्रह के स्थान पर कुल ग्यारह परगनों का सृजन हुआ।1838.46 में बैटन के बन्दोबस्त में भी इनकी संख्या और स्थिति यथावत रही। 
  प्रत्येक परगने में अनेक पट्टियाँ थीं। ट्रेल के समय में कुमाऊँ के परगनों में कुल अस्सी तथा गढ़वाल में कुल अड़तालीस पट्टियाँ थीं। परंतु पट्टियों का निर्धारण भौगोलिक सीमाओं को ध्यान में रखकर नहीं किया गया था। हेनरी रैमजे के काल में बैकेट ने 1861.64(गढ़वाल) तथा 1863.73(कुमाऊँ)में अपने तीस वर्षीय बन्दोबस्त(दसवें)के द्वारा  इस क्षेत्र के परगनों में स्थित पट्टियों तथा उनके गाँवों की सीमाओं का पुननिर्धारण और विभाजन इनकी भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए किया। बैकेट ने इनके पुनर्गठन के अनेक कारण कारण देते हुए एक पट्टी से दूसरी पट्टी में स्थानान्तरित गाँवों की विस्तृत सूची दी है। 1892.93 में पुनः पट्टियों की सीमाओं में कुछ परिवर्तन किए गए। इस परिवर्तन के बाद अल्मोड़ा जिले में 101,नैनीताल में 25 तथा गढ़वाल जिले में 77 पट्टियाँ विद्यमान थीं। बैकेट के बन्दोबस्त की अवधि 1902 ई. तक ही होने के कारण 1899 में गूज ने पुनरीक्षण कार्य किया परन्तु कुछ परगनों में कृषि भूमि की माप और कर संबंधी सुधारों को छोड़कर बेकेट द्वारा किए गए कार्यों में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का प्रयास नहीं किया।

No comments:

Post a Comment