Sunday 25 March 2012

नैनीताल

नैनीताल
मानसखण्ड में त्रिषि सरोवर के नाम से उल्लिखित नैनीताल 19वीं शताब्दी के मध्य भाग (1839.42) तक जंगलों से परिपूर्ण था। 1842 से यह बसना प्रारम्भ हुआ। इससे पहले समीपवर्ती गाँवों के लोग यहाँ पशुचारण हेतु अथवा नैनादेवी के मेले के अवसर पर आते थे।1842 में भवन निर्माण के लिए भूमि अनुदान दिए गये और 1846 से यहाँ मकान बनने प्रारम्भ हुए। अपने देश का भूगोल के लेखक ने नैनीताल का वर्णन करते हुए लिखा है:
“पहाड़ छखाता के उत्तर की ओर नैनीताल स्थान इस काल में बड़ा प्रसिद्ध है। पहले वह स्थान जंगल पहाड़ के कारण प्रकट न था। कमिश्नर बैटन साहब जो उस समय में एसिस्टेंट कमिश्नर थे, पहिले उन्होंने उस ताल को प्रसिद्ध किया। जब यह चर्चा साहिब लोगों में हुई तो मुरादाबाद के कलक्टर वलसन साहिब और बारन (बैरन) साहिब आदि अनेक साहिबों ने वहाँ आकर बंगलें बनाने आरम्भ किये। अब कई बंगले साहिब लोगों के और एक छोटा बाजार वहाँ बन ग...या। प्रतिदिन नैनीताल की वृद्धि होती जाती है ....।“
1873 के अधिनियम 15 के तहत नैनीताल में नगरपालिका की स्थापना की गई, जिसका संचालन छः सदस्यों की एक समिति द्वारा होता था। नगर में एकाधिक चर्च, शिक्षा संस्थाओं, यात्री.आवास, पुलिस स्टेशन, डाक व तारघर, औषधालय, चिकित्सालय, होटलों तथा छात्रावासों का निर्माण किया गया।
1891 में नैनीताल जिला बनने के बाद इस नगर को जिले का मुख्यालय बनाया गया। कुमाऊँ के अनेक उच्चाधिकारियों के कार्यालय यहाँ स्थित थे। प्रशासनिक मुख्यालय होने के अतिरिक्त नैनीताल नगर उत्तराखण्ड के सर्वाधिक उल्लेखनीय शैक्षिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। एक प्रमुख पर्यटन स्थल होने के कारण ग्रीष्मकाल में देश के विभिन्न भागों से सैलानी यहाँ भ्रमण हेतु आते थे। यह नगर तत्कालीन संयुक्त प्रान्त की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी था।
1880 के भूस्खलन के बाद नगर का विकास कार्य कुछ समय के लिए अवरुद्ध हो गया। 1882 में काठगोदान तक रेलमार्ग के निर्माण और वहाँ से नैनीताल तक बैलगाड़ी की पक्की सड़क बनने के उपरान्त पुनः नैनीताल का चहुँमुखी विकास आरम्भ हुआ।
मेरी पुस्तक उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक भूगोल से एक अंश(ज्ञानोदय प्रकाशन. नैनीताल)

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