Friday 23 March 2012

पाश की एक कविता- सपने

सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास ग्रन्थों को सपने नहीं आते
... सपनों के लिए लाजिमी है
झेलने वाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नजर होनी लाजिमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते

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