Tuesday 22 November 2011

’मुअनजोदड़ो’ -ओम थानवी (वाणी प्रकाशन, 4695, 21-ए, दरियागंज, नई दिल्लीः मूल्यः रू0 200)
यह हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल मोंहेंजोदड़ो/मुअनजोदड़ो का अत्यंत ही जीवंत यात्रावृत्तांत है।
ग्रंथ को पढ़ते हुए ऐसा आभास होता है, जैसे हम उसी युग में आ गए हों। साथ ही लेखक ने विषय का भी गहन अध्ययन एवं विष्लेषण किया है। लेखक द्वारा हड़प्पा सभ्यता को समझने में सहायक संबंधित ग्रंथों की एक विस्तृत सूची भी ग्र...ंथ में दी गई है। अवशेषों से जुड़े विभिन्न रेखाचित्रों ने यात्रावृत्त में नई जान डाल दी है।
पुस्तक का एक अंश यहाँ दिया जा रहा है- ’’ मुअनजोदड़ो की खूबी यह है कि इस आदिम शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम.फिर सकते हैं। यहाँ कि सभ्यता और संस्कृति का सामान चाहे अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, शहर जहाँ था अब भी है। आप इसकी किसी भी दीवार पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह कोई खण्डहर क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर सहसा सहम जा सकते हैं, जैसे भीतर कोई अब भी रहता हो। रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध तहसूस कर सकते हैं।शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रुन.झुन भी सुन सकते हैं, जिसे आपने पुरातत्व की तस्वीरों में मिट्टी के रंग में देखा है। यह सच है कि किसी आँगन की टूटी.फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वे आकाश की तरफ जाकर अधूरी ही रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर खड़े हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झाँक रहे हैं।
किरन त्रिपाठी

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